एक ज़माने में ब्रॉड–गेज के साथ साथ भारतीय रेल तंत्र में कई हजार किलोमीटर का जटिल मीटर–गेज तंत्र भी था। लेकिन वर्तमान में प्रोजेक्ट यूनीगेज की सफलता के साथ ही यह मीटर गेज तंत्र इतिहास के पन्नो में समाता जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रोजेक्ट यूनी गेज ने देश को बेहतर संयोजकता दी है, लेकिन अब समय है कि मीटर गेज का एक छोटा हिस्सा संरक्षित किया जाए ताकि भावी पीढ़ी इन छोटी गाड़ियों का अनुभव कर सकें, जो कि कई दशकों से ईमानदारी से भारत की सेवा करती आ रही हैं।
संरक्षण के लिए सर्वश्रेष्ठ शेष मथ्य प्रदेश का महू–ओंकारेश्वर खंड है। इस मार्ग में शानदार चोरल घाट खंड है जिसकी दृश्यावली की प्रतिद्वंद्विता दुनिया भर के प्रसिद्ध पर्यटक रेलवे से है। चोरल घाटी से उतरते समय, पहाड़ों के किनारों से होते हुए यह मार्ग 4 लम्बे पुलों और 4 सुरंगों से गुजरता है और बलवाड़ा के पश्चात मध्य प्रदेश के विशाल मैदानों में प्रवेश करता है। ओंकारेश्वर से पहले यह नर्मदा नदी को 800 मीटर लंबे, 140 वर्षीय पुल के माध्यम से पार करता है। मॉनसून के दौरान जब पहाड़ियां हरियाली और बारहमासी झरनो से जीवित होती है, भारत भर से पर्यटक बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं। उचित विज्ञापन के माध्यम से रेलवे दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है।
भारतीय रेलवे ने पहले ही कहा है कि इस लाइन को विरासत के रूप में बचाया जाएगा क्योंकि गेज रूपांतरण के दौरान घाट खंड बायपास किया जाना है। हालाँकि यह सुनिश्चित करने के लिए कि लाइन का उपयोग बंद न हो, नियमित सेवाओं के अंत से पहले इस बारे में चर्चा शुरू करना महत्वपूर्ण है। असम के लोअर हाफलोंग खंड को भी विरासत के रूप में बचाया जाना था लेकिन गेज–कनवर्ज़न के समापन के बाद यह 3 सालों से निष्क्रिय है और अब फिर से संचालन की संभावना नहीं है।
इस खंड के संरक्षण से पूरे क्षेत्र को लाभ होगा, घरेलू और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करना और साथ ही साथ चोरल घाटी के निवासियों के लिए अमूल्य सेवा प्रदान करना जो अन्यथा रेल सेवा से वंचित हो जाएंगे। रेलवे और उपकरण का उचित संरक्षण भारत की सुंदर पर्वत विरासत लाइनों की सूची में शामिल होने के लिए एक विश्व स्तर की विरासत रेलवे बना देगा।
हमारे लक्ष्य:
- महू और बलवाड़ा के बीच चोरल घाट खंड को संरक्षित करना
- गेज रूपांतरण प्रक्रिया के दौरान भी निरंतर संचालन
- नियमित भाप संचालित सेवाओं को फिर से शुरू करना
- महू डीजल और कोच शेड को सुरक्षित रखकर मीटर गेज रेलवे के इतिहास को समर्पित एक संग्रहालय में परिवर्तित करना
- गेज रूपांतरण प्रक्रिया के दौरान ओमकेरेश्वर और बलवाड़ा के बीच दोहरे–गेज स्लीपर का उपयोग कर एक दोहरी–गेज लाइन का निर्माण
- पवित्र शहर ओंकारेश्वर तक एक दोहरी गेज रेलवे का निर्माण